भारत के उपराष्ट्रपति  कौन हैं?

वर्तमान समय में भारत के उपराष्ट्रपति  श्री एम. वेंकैया नायडु  हैं। जो कि 8 अगस्त 2017 से अपना कार्यभार संभाल रहे हैं। भारत के उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडु का जन्म 1 जुलाई 1949 को आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले के चावटपलेम में एक कम्मू(कायस्थ परिवार) में हुआ था।

भारत के उपराष्ट्रपति
Vice President of India
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श्री एम. वेंकैया नायडु
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पदस्थ
कार्यालय ग्रहण 
8 अगस्त 2017
राष्ट्रपतिराम नाथ कोविन्द
पूर्वा धिकारीउपराष्ट्रपति, हामिद अंसारी
शैली -माननीय (औपचारिक)
श्री उपराष्ट्रपति (अनौपचारिक)
महामहिम (राजनयिक पत्राचार में)

संक्षेपाक्षर -VP

आवास -उपराष्ट्रपति का घर, नई दिल्लीदिल्लीभारत

नियुक्तिकर्ता- भारत का निर्वाचक मंडल
अवधिकाल -पांच साल
अक्षय
गठनीय साधन  भारत का संविधान
उद्घाटकधारकसर्वेपल्लि राधाकृष्णन (1952–1962)
गठनमई 13, 1952; 68 वर्ष पहले
वेतन₹4,00,000 (US$5,840) प्रति माह[1]
वेब्साइटvicepresidentofindia.nic.in

भारत के वर्तमान उपराष्ट्रपति का जीवन परिचय

श्री एम. वेंकैया नायडु का जन्म 1 जुलाई 1949 को आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले के चावटपलेम में एक कम्मू(कायस्थ परिवार) में हुआ था।और इनके माता जी का नाम स्वर्गीय श्रीमती रामनम्मा तथा इनके पिता जी का नाम स्वर्गीय श्री रंगैया नायडु हैं और इनकी पत्नी का नाम  

श्री एम. वेंकैया नायडु-इनकी शैक्षणिक योग्यताएं👇
बी.ए., बी.एल. वी.आर. हाई स्कूल, नेल्लौर, वी.आर. कॉलेज, नेल्लौर और लॉ कॉलेज, आंध्र विश्वविद्यालय, विशाखापट्टनम में शिक्षा ग्रहण की।

इनका स्थाई पता   प्लॉट सं. 514, रोड सं. 29, जुबली हिल्स, हैदराबाद-500033 (तेलंगाना)
 उपराष्ट्रपति का  वर्तमान पता   6, मौलाना आज़ाद रोड, नई दिल्ली - 110 011 दूरभाष - 011-23016422, 23016344 ई-मेल: vpindia[at]nic[dot]in
व्यवसाय: कृषि विज्ञानी/कृषक, राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्त्ता
संतान: एक पुत्र और एक पुत्री

शिक्षा में इन्होने- वी.आर. हाई स्कूल, नेल्लोर से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और वी.आर. कॉलेज से राजनीति तथा राजनयिक अध्ययन में स्नातक किया। वे स्नातक प्रतिष्ठा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुये। तत्पश्चात उन्होंने आन्ध्र विश्वविद्यालयविशाखापत्तनम से कानून में स्नातक की डिग्री हासिल की। 1974 में वे आंध्र विश्वविद्यालय में छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित हुये। कुछ दिनों तक वे आंध्र प्रदेश के छात्र संगठन समिति के संयोजक भी रह चुके हैं।

भारत के उपराष्ट्रपतियों की सूची

यह भारत के उपराष्ट्रपतियों की सूची है जो भारतीय संविधान[1] की व्यवस्था के तहत अबतक चुने गये हैं।

#उपराष्ट्रपतिपदग्रहणपदमुक्तिराष्ट्रपति
1सर्वपल्ली राधाकृष्णन13 मई 195214 मई 1957राजेन्द्र प्रसाद
2जाकिर हुसैन13 मई 196212 मई 1967सर्वपल्ली राधाकृष्णन
3वी वी गिरी13 मई 196703 मई 1969जाकिर हुसैन
4गोपाल स्वरूप पाठक31 अगस्त 196930 अगस्त 1974वी वी गिरी
फ़ख़रुद्दीन अली अहमद
5बी डी जत्ती31 अगस्त 197430 अगस्त 1979फ़ख़रुद्दीन अली अहमद
नीलम संजीव रेड्डी
6मोहम्मद हिदायतुल्ला31 अगस्त 197930 अगस्त 1984नीलम संजीव रेड्डी
ज्ञानी जैल सिंह
7रामस्वामी वेंकटरमण31 अगस्त 198427 जुलाई 1987ज्ञानी जैल सिंह
8शंकर दयाल शर्मा03 सितम्बर 198724 जुलाई 1992रामस्वामी वेंकटरमण
9के आर नारायणन21 अगस्त 199224 जुलाई 1997शंकर दयाल शर्मा
10कृष्ण कान्त 21 अगस्त 199727 जुलाई 2002के आर नारायणन
एपीजे अब्दुल कलाम
11भैरोंसिंह शेखावत19 अगस्त 200221 जुलाई 2007एपीजे अब्दुल कलाम
12मोहम्मद हामिद अंसारी11 अगस्त 200719 जुलाई 2017प्रतिभा पाटिल
प्रणब मुखर्जी
राम नाथ कोविन्द
13वेंकैया नायडू08 अगस्त 2017- वर्तमान -[2]

श्री एम. वेंकैया नायडु  पूर्व धारित पद:

  1. 1971: अध्यक्ष, छात्र संघ, वी आर कॉलेज, नेल्लोर 
  2. 1973-74: अध्यक्ष, छात्र संघ, आन्ध्र यूनिवर्सिटी कॉलेजेस
  3. 1974:संयोजक, आन्ध्र प्रदेश की लोकनायक जय प्रकाश नारायण छात्र संघर्ष समिति
  4. 1977-80: अध्यक्ष, यूथ विंग, जनता पार्टी, आन्ध प्रदेश
  5. 1978-83 & 1983-85: सदस्य, विधान सभा, आन्ध्र प्रदेश
  6. 1980-83: उपाध्यक्ष, यूथ विंग, अखिल भारतीय भा.ज.पा.
  7. 1980-85: आन्ध्र प्रदेश भा.ज.पा. विधायक दल के नेता;
  8. 1985-88: महामंत्री, आन्ध्र प्रदेश राज्य भा.ज.पा.
  9. 1988-93: अध्यक्ष, आन्ध्र प्रदेश भा.ज.पा. की राज्य इकाई
  10. 1993-2000: महामंत्री, अखिल भारतीय भा.ज.पा
  11. 1996-2000: सचिव (i) भा.ज.पा. संसदीय बोर्ड और (ii) भा.ज.पा. केन्द्रीय निर्वाचन समिति तथा (iii) प्रवक्ता, भा.ज.पा.;
  12. अप्रैल 1998: कर्णाटक से राज्य सभा के लिए निर्वाचित हुए (पहला कार्यकाल)
  13. 1998-99: सदस्य, गृह कार्य संबंधी समिति और सदस्य, कृषि मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति
  14. 1998 - 2001 & 2005 - 2013: सदस्य, तम्बाकू बोर्ड
  15. 1999 - 2000: सदस्य, वित्त संबंधी समिति
  16. जनवरी 2000: सदस्य, ग्रामीण विकास मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति
  17. 2000 (सितम्बर) -2002 (जून): ग्रामीण विकास मंत्री, भारत सरकार
  18. 2002 (जुलाई) - 2004 (अक्तूबर): राष्ट्रीय अध्यक्ष, भा.ज.पा.
  19. 2004 (जनवरी) - 2004 (फरवरी): सदस्य, विदेश मामलों संबंधी समिति;
  20. जून 2004:कर्णाटक से राज्य सभा के लिए पुनर्निर्वाचित हुए (दूसरा कार्यकाल);
  21. 2004 - 06: सदस्य, वित्त संबंधी स्थायी समिति;
  22. 2005: सदस्य, कृषि मंत्रालय तथा उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति;
  23. 2006 - 2008: अध्यक्ष, याचिका समिति;
  24. 2006 से सदस्य, (i) भाजपा संसदीय बोर्ड और (ii) भाजपा केन्द्रीय निर्वाचन समिति
  25. 2008 - 2014: अध्यक्ष, गृह कार्य संबंधी समिति (राज्य सभा);
  26. जून 2010: जून, 2010 में कर्णाटक से राज्य सभा के लिए पुनर्निर्वाचित हुए (तीसरा कार्यकाल);
  27. 2011 (दिसम्बर) - 2014 (मई): आपदा प्रबंधन संबंधी संसदीय मंच;
  28. 26 मई 2014 - 5 जुलाई, 2016: शहरी विकास, आवासन और शहरी गरीबी उन्मूलन तथा संसदीय कार्य मंत्री;
  29. जून, 2016 - राजस्थान से राज्य सभा के लिए पुनर्निर्वाचित हुए (चौथा कार्यकाल);
  30. 6th जुलाई, 2016-17th जुलाई, 2017:शहरी विकास, आवासन और शहरी गरीबी उन्मूलन तथा सूचना और प्रसारण मंत्री


    श्री एम. वेंकैया नायडु की  रूचियां?

    अन्य रुचियाँ -कृषि, सामाजिक कार्य तथा राजनीतिक एवं लोक हित के विषयों पर समाचार पत्रों में लेख लिखना; स्वैच्छिक संगठनों को प्रोत्साहित करना और कृषि, स्वास्थ्य, पशु देख-रेख, व्यावसायिक प्रशिक्षण, शिक्षा आदि के क्षेत्रों में सकारात्मक कार्यों में शामिल होना एवं मार्गदर्शन करना

    अभिरूचि: पठन, लोगों को शिक्षित एवं प्रोत्साहित करना


    विदेश यात्राएं: संयुक्त राज्य अमेरिका, युनाइटेड किंगडम, मलयेशिया, सिंगापुर, फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैंड, आस्ट्रेलिया, मॉरीशस, मालदीव, दुबई, हांगकांग, थाईलैंड, स्पेन मिस्र और जर्मनी


    अन्य जानकारी: 1974 में आंध्रप्रदेश में जयप्रकाश नारायण छात्र संघर्ष समिति की भ्रष्टाचार निरोधक इकाई के संयोजक रहे। उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण की विचारधारा से प्रभावित होकर आपातकाल के विरुद्ध संघर्ष में हिस्सा लिया और उन्हें जेल भी जाना पड़ा। आपातकाल के बाद वे 1977 से 198० तक जनता पार्टी की युवा शाखा के अध्यक्ष रहे।


    उपराष्ट्रपति पद के लिए योग्यताएं

    1. अनुच्छेद 66 (3) के अंतर्गत उपराष्ट्रपति का चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति के लिए योग्यताएं निर्धारित की गई है जो निम्नवत है –
    2. वह भारत का नागरिक हो,
    3. वह 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो,
    4. वह राज्यसभा का सदस्य बनने की योग्यता रखता हो,
    5. वह केंद्र सरकार अथवा राज्य सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकरण या अन्य किसी सार्वजनिक प्राधिकरण के अंतर्गत किसी लाभ के पद पर न हो
    6. वर्तमान राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति और किसी राज्य का राज्यपाल तथा संघ या राज्य का मंत्री किसी लाभ के पद पर नहीं माने जाते हैं अतः इसी कारण व उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए योग्य होती हैं इसके साथ-साथ उपराष्ट्रपति के चुनाव के नामांकन के लिए उम्मीदवार के पास कम से कम 20 प्रस्तावक और अनुमोदक होनी चाहिए

    पदावधि एवं पद रिक्तियों की स्थिति

    1. अनुच्छेद 377 के अनुसार उप राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख के 5 वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा परंतु उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग कर सकता है |
    2. (अनुच्छेद 68) उपराष्ट्रपति राज्यसभा द्वारा किए गए संकल्प द्वारा पद से हटाया जा सकेगा जिसे राज्यसभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत ने पारित किया हो और जिससे लोकसभा सहमत है परंतु हटाने के संकल्प प्रस्तावित करने के 14 दिन पूर्व उपराष्ट्रपति को सूचित करना होगा |
    3. उप राष्ट्रपति अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी तब तक पद धारण करता रहेगा जब तक कि उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है |
    4. जब उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है तब उसे महाभियोग लगाकर उसी विधि से हटाया जा सकेगा जिस विधि से संविधान में राष्ट्रपति को हटाए जाने की व्यवस्था है |

    उपराष्ट्रपति के निर्वाचन प्रक्रिया(Election process of the Vice President)

    1. अनुच्छेद 361 में उपराष्ट्रपति के निर्वाचन प्रक्रिया का वर्णन है इसके अनुसार उपराष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा होता है जिसमें संसद के दोनों सदनों के सभी सदस्य शामिल होते हैं अतः मनोनीत सदस्य भी उपराष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेते हैं |
    2. राष्ट्रपति के सामान उपराष्ट्रपति का निर्वाचन भी अप्रत्यक्ष तथा अनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के तहत एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है क्योंकि इसमें प्रांतों के विधान मंडलों में भाग लेने का प्रावधान नहीं है |
    3. अनुच्छेद 66 (1)  के अनुसार उप राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल में सिर्फ राज्यसभा एवं लोकसभा के सदस्य भाग लेते हैं |



    उपराष्ट्रपति का निर्वाचन

    1. उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचकगण द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होता है। उपराष्ट्रपति के पद के लिए किसी व्यक्ति को निर्वाचित किए जाने हेतु निर्वाचकगण में संसद के दोनों सदनों के सदस्य होते हैं।*

    2. उपराष्ट्रपति संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होता है। यदि संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का कोई सदस्य उपराष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है, तो यह समझा जाता है कि उसने उस सदन में अपना स्थान उपराष्ट्रपति के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है।

    3. A कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति होने का पात्र तभी होगा यदि वह-

    (क) भारत का नागरिक है;

    (ख) पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका है, और

    (ग) राज्य सभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए अर्हित है।

    अर्थात् उसे भारत का नागरिक होना चाहिए, उसकी आयु 30 वर्ष की होनी चाहिए, उसे उस राज्य या संघ राज्य क्षेत्र में संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का मतदाता होना चाहिए जहां से वह प्रतिनिधित्व करने के लिए निर्वाचित होना चाहता है।

    कोई व्यक्ति, जो भारत सरकार के या किसी राज्य सरकार के अधीन या किसी अधीनस्थ स्थानीय प्राधिकरण के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, वह भी इसका पात्र नहीं है।

    4. उपराष्ट्रपति की पदावधि की समाप्ति से हुई रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन, पदावधि की समाप्ति से पहले ही पूर्ण कर लिया जाता है। यदि रिक्ति मृत्यु, पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से होती है, तब उस रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन, रिक्ति होने के पश्चात् यथाशीघ्र किया जाता है। इस प्रकार निर्वाचित व्यक्ति अपने पद ग्रहण की तारीख से पूरे पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करने का हकदार होता है।

    उपराष्ट्रपति के निर्वाचन का अधीक्षण:

    भारत का निर्वाचन आयोग उपराष्ट्रपति के पद के लिए निर्वाचन कराता है।

    उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित महत्वपूर्ण उपबंध:

    1. Tअगले उपराष्ट्रपति का निर्वाचन निवर्तमान उपराष्ट्रपति की पदावधि की समाप्ति के 60 दिनों के भीतर किया जाना होता है।

    2. उपराष्ट्रपति निर्वाचनों को संचालित करने के लिए सामान्यत: नियुक्त निर्वाचन अधिकारी चक्रानुक्रम में संसद के किसी भी सदन का महासचिव होता है। निर्वाचन अधिकारी विहित प्रपत्र में अभ्यर्थियों का नामांकन आमंत्रित करते हुए निर्वाचन के संबंध में इस आशय की सार्वजनिक सूचना जारी करता है और उस स्थान को विनिर्दिष्ट करता है जहां नामांकन पत्र प्रस्तुत किए जाएंगे।

    Aनिर्वाचित होने के लिए अर्हित तथा उपराष्ट्रपति के रूप में निर्वाचन के लिए खड़े होने वाले किसी भी व्यक्ति को कम से कम 20 संसद सदस्यों द्वारा प्रस्तावक के रूप में और कम से कम 20 संसद सदस्यों द्वारा समर्थक के रूप में नामित किया जाना अपेक्षित है।

    निर्वाचन अधिकारी को नामनिर्देशन पत्र ऐसे स्थान पर व ऐसे समय व तारीख तक प्रस्तुत किये जाने होते हैं जिन्हें सार्वजनिक सूचना में विनिर्दिष्ट किया गया हो। किसी अभ्यर्थी द्वारा या उसकी ओर से अधिकतम चार नामांकन-पत्र प्रस्तुत किए जा सकते हैं या निर्वाचन अधिकारी द्वारा स्वीकार किए जा सकते हैं।

    3. उपराष्ट्रपति के रूप में निर्वाचन चाहने वाले अभ्यर्थी को 15,000/- रू. की जमानत राशि जमा करनी होती है। अभ्यर्थी की ओर से दायर नामांकन पत्रों की संख्या चाहे कितनी भी हो, उसे सिर्फ यही राशि जमा करानी होगी।

    4. नामांकन पत्रों की संवीक्षा निर्वाचन अधिकारी द्वारा विनिर्दिष्ट तिथि पर अभ्यर्थी व उसके प्रस्तावक या समर्थक तथा विधिवत् प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में की जाती है।

    5. कोई भी अभ्यर्थी विनिर्दिष्ट समय के भीतर निर्वाचन अधिकारी को विहित प्रपत्र में लिखित सूचना देकर अपनी अभ्यर्थिता वापस ले सकेगा।

    6. In निर्वाचन में निर्वाचक के पास उतनी ही वरीयताएं होती हैं जितने अभ्यर्थी होते हैं। अपना मत डालने में, मतदाता को अपने मत-पत्र पर उस अभ्यर्थी के नाम के सामने दिए स्थान पर अंक 1 अभिलिखित करना अपेक्षित है जिसका चयन वह अपनी प्रथम वरीयता के रूप में करता है और इसके अतिरिक्त वह अपने मत-पत्र पर अन्य अभ्यर्थी के नामों के सामने दिए स्थान पर अंक 2,3,4 इत्यादि अभिलिखित करके उतनी परवर्ती वरीयताएं अभिलिखित कर सकेगा जितनी वह चाहता है। मतों को भारतीय अंकों के अंतरराष्ट्रीय रूप में या रोमीय रूप में या किसी भारतीय भाषा के रूप में अभिलिखित किया जाना चाहिए, परन्तु शब्दों में नहीं दर्शाया जाना चाहिए।

    प्रत्येक मत पत्र प्रत्येक गणना में एक मत व्यपदिष्ट करता है। मतों की गणना की प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण सम्मिलित हैं :

    (क) प्रत्येक अभ्यर्थी द्वारा प्राप्त किए गए प्रथम वरीयता वाले मतों की संख्या का पता लगाया जाता है।

    (ख) इस प्रकार पता लगाई गई संख्याओं को जोड़ा जाता है - योग को दो से विभाजित किया जाता है और किसी भी शेषफल पर ध्यान न देते हुए भागफल में एक जोड़ा जाता है। परिणामी संख्या ऐसा कोटा होती है जो कि निर्वाचन में अपनी वापसी सुनिश्चित करने के लिए किसी अभ्यर्थी के लिए पर्याप्त है।

    (ग) यदि प्रथम या किसी परवर्ती गणना के अंत में, किसी अभ्यर्थी के जमा वोटों की कुल संख्या कोटे के बराबर या इससे अधिक हो, तो उस अभ्यर्थी को निर्वाचित घोषित किया जाता है।

    (घ) यदि किसी गणना के अंत में, किसी भी अभ्यर्थी को निर्वाचित घोषित नहीं किया जा सके, तो,

    (क) इस चरण तक जिस अभ्यर्थी को सबसे कम संख्या में मत मिले हों, उसे चुनाव से अपवर्जित कर दिया जाएगा, और उसके सभी मतपत्रों की एक-एक करके, पुन: संवीक्षा की जाएगी जोकि उन पर अंकित दूसरी वरीयता, यदि कोई हो, के संदर्भ में होगी। इन मतपत्रों को उन संबंधित शेष (अविच्छिन्न) अभ्यर्थियों को अंतरित कर दिया जाएगा जिनके लिए ऐसी दूसरी वरीयताएं मतपत्रों पर अंकित की गई हैं और उन मत पत्रों के वोटों के मूल्य को ऐसे अभ्यर्थियों द्वारा प्राप्त मतों के मूल्य में जोड़ दिया जाएगा। इन मत पत्रों को पूर्वोक्त अविच्छिन्न अभ्यर्थियों को अंतरित कर दिया जाएगा। जिन मत पत्रों पर दूसरी वरीयता अंकित नहीं की जाती है, उन्हें समाप्त मत पत्र मान लिया जाएगा और आगे उनकी गणना नहीं की जाएगी चाहे उनमें तीसरी या कोई परवर्ती वरीयता अंतर्विष्ट हो।

    यदि इस गणना के अंत में, कोई अभ्यर्थी कोटा प्राप्त कर लेता है, तो उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाएगा।

    (ख) यदि दूसरी गणना के अंत में भी, किसी अभ्यर्थी को निर्वाचित घोषित न किया जा सके, तो यह गणना ऐसे अभ्यर्थी को अपवर्जित करके आगे जारी रखी जाएगी, जो अब इस चरण तक सूची में सबसे नीचे हो। उसके सभी मत पत्रों, जिनमें ऐसे मत पत्र सम्मिलित हैं, जिन्हें उसने दूसरी गणना के दौरान प्राप्त किया हो, की पुन: संवीक्षा की जाएगी जोकि उनमें से प्रत्येक पर अंकित "अगली उपलब्ध वरीयता" के संदर्भ में होगी। यदि पहली गणना में उसके द्वारा प्राप्त मत पत्र पर, अविच्छिन्न अभ्यर्थियों में से किसी अभ्यर्थी के लिए दूसरी वरीयता अंकित है, तो इसे उस अभ्यर्थी को अंतरित कर दिया जाएगा। यदि ऐसे किसी मत पत्र पर, उस अभ्यर्थी के लिए दूसरी वरीयता अंकित की जाती है जिसे पहले ही दूसरे दौर में अपवर्जित किया जा चुका है, तो ऐसे मत पत्र को अविच्छिन्न अभ्यर्थी के लिए तीसरी वरीयता, यदि कोई हो, के संदर्भ में अंतरित कर दिया जाएगा। इसी प्रकार, दूसरे दौर में अंतरण के माध्यम से उसके द्वारा प्राप्त किए गए मतपत्रों की भी उन पर अंकित की गई तीसरी वरीयता के संदर्भ में संवीक्षा भी की जाएगी।

    सूची में निम्नतम अभ्यर्थियों के अपवर्जन की यह प्रक्रिया अविच्छिन्न अभ्यर्थियों में से एक के कोटा प्राप्त करने तक दोहराई जाएगी।

    7. निर्वाचन कराये जाने और मतों की गणना कराए जाने के बाद, निर्वाचन अधिकारी निर्वाचन का परिणाम घोषित करता है। उसके पश्चात्, वह केन्द्रीय सरकार (विधि और न्याय मंत्रालय) तथा भारत के निर्वाचन आयोग को इस परिणाम की जानकारी देता है और केन्द्रीय सरकार राजपत्र में उपराष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित व्यक्ति का नाम प्रकाशित कराती है।

    उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित विवाद

    1. उपराष्ट्रपति के निर्वाचन के संबंध में पैदा होने वाले संदेहों और विवादों की भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा जांच की जाती है और निर्णय किया जाता है। उसका निर्णय अंतिम होता है।

    2. उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को चुनौती देने वाली याचिका पर भारत के उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनवाई की जाती है।

    3. इस याचिका के साथ अनिवार्य रूप से 20,000/-रूपये की जमानत राशि जमा करनी होती है।

    उपराष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान का पाठ :

    "मैं, ____________________________ईश्वर की शपथ लेता हूं/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा तथा जिस पद को मैं ग्रहण करने वाला हूं उसके कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करूंगा।"

    *भारत के राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए निर्वाचकगण में सिर्फ संसद और राज्यों की विधानसभाओं के निवार्चित सदस्य होते हैं।

    **संविधान में इन परिस्थितियों में भारत के राष्ट्रपति के पद हेतु निर्वाचन के लिए छह माह (अनुच्छेद 62) की अधिकतम सीमा का उपबंध है।

     

    उपराष्ट्रपति के कार्य एवं शक्तियां

    उपराष्ट्रपति के कार्य एवं शक्तियां निम्न प्रकार हैं –


    राज्यसभा अध्यक्ष के रूप में

    1. अनुछेद 64 के अनुसार उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है और अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा परंतु जब राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है तब राज्यसभा के सभापति के रूप में कार्य नहीं करेगा |
    2. उपराष्ट्रपति राज्यसभा के अध्यक्ष के रूप में इसके अधिवेशनों की अध्यक्षता करता है राज्यसभा में अनुशासन रखना उसकी जिम्मेदारी है |


    राष्ट्रपति के रूप में

    1. अनुच्छेद 65 उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति का कार्य सौपता है अनुच्छेद 65(1) राष्ट्रपति की मृत्यु,  पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से उसके पद में हुई रिक्त की दशा में उपराष्ट्रपति उस तारीख तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा |
    2. जब तक नवनिर्वाचित राष्ट्रपति अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है उपराष्ट्रपति अधिक से अधिक 6 माह तक राष्ट्रपति के पद पर कार्य कर सकता है क्योंकि संविधान के अनुसार नहीं राष्ट्रपति का चुनाव छह माह के अंदर हो जाना चाहिए |
    3. अनुच्छेद 65 (3) के अनुसार जब उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा तो वह राष्ट्रपति की सभी शक्तियों  का प्रयोग करेगा उसे वेतन एवं भत्ते भी राष्ट्रपति वाले मिलेंगे |
    4. इसी प्रकार उपराष्ट्रपति जब राज्यसभा के सभापति के रूप में कार्य करता है तो उसे राज्यसभा के सभापति के रूप में वेतन व अन्य सुविधाएं प्राप्त होती है न कि उप राष्ट्रपति के रूप में |

    उपराष्ट्रपति का राज्य सभा का पदेन सभापति होना-- उपराष्ट्रपति, राज्य सभा का पदेन सभापति होगा और अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा। परंतु जिस किसी अवधि के दौरान उपराष्ट्रपति, अनुच्छेद 65 के अधीन राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है या राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन करता है, उस अवधि के दौरान वह राज्य सभा के सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन नहीं करेगा और वह अनुच्छेद 97 के अधीन राज्य सभा के सभापति को संदेय वेतन या भत्ते का हकदार नहीं होगा।



    राष्ट्रपति के पद में आकस्मिक रिक्ति के दौरान या उसकी अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति का राष्ट्रपति के रूप में कार्य करना या उसके कृत्यों का निर्वहन--

    • (1) राष्ट्रपति की मृत्यु, पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से उसके पद में हुई रिक्ति की दशा में उपराष्ट्रपति उस तारीख तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा जिस तारीख को ऐसी रिक्ति को भरने के लिए इस अध्याय के उपबंधों के अनुसार निर्वाचित नया राष्ट्रपति अपना पद ग्रहण करता है।
    • (2) जब राष्ट्रपति अनुपस्थिति, बीमारी या अन्य किसी कारण से अपने कृत्यों का निर्वहन करने में असमर्थ है तब उपराष्ट्रपति उस तारीख तक उसके कृत्यों का निर्वहन करेगा जिस तारीख को राष्ट्रपति अपने कर्तव्यों को फिर से संभालता है।

    उपराष्ट्रपति को उस अवधि के दौरान और उस अवधि के संबंध में, जब वह राष्ट्रपति के रूप में इस प्रकार कार्य कर रहा है या उसके कृत्यों का निर्वहन कर रहा है, राष्ट्रपति की सभी शक्तियाँ और उन्मुक्तियाँ होंगी तथा वह ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का जो संसद, विधि द्वारा, अवधारित करे और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं, हकदार होगा।


    उपराष्ट्रपति का निर्वाचन

    (1) उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचकगण के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होगा।

    (2) उपराष्ट्रपति संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यदि संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का कोई सदस्य उपराष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है तो यह समझा जाएगा कि उसने उस सदन में अपना स्थान उपराष्ट्रपति के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है।

    (3) कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र तभी होगा जब वह--

    (क) भारत का नागरिक है,
    (ख) पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका है और
    (ग) राज्य सभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए अर्हित है।

    (4) कोई व्यक्ति, जो भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन अथवा उक्त सरकारों में से किसी के नियंत्रण में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र नहीं होगा।

    स्पष्टीकरण-इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए, कोई व्यक्ति केवल इस कारण कोई लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल है अथवा संघ का या किसी राज्य का मंत्री है।


    उपराष्ट्रपति की पदावधि

    (1) उपराष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा: परंतु--

    (क) उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा;


    (ख) उपराष्ट्रपति, राज्य सभा के ऐसे संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा जिसे राज्य सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत ने पारित किया है और जिससे लोकसभा सहमत है; किंतु इस खंड के प्रयोजन के लिए कई संकल्प तब तक प्रस्तावित नहीं किया जाएगा जब तक कि उस संकल्प को प्रस्तावित करने के आशय की कम से कम चौदह दिन की सूचना न दे दी गई हो;


    (ग) उपराष्ट्रपति, अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी, तब तक पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है।


    उपराष्ट्रपति के पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन करने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि--

    (1) उपराष्ट्रपति की पदावधि की समाप्ति से हुई रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन, पदावधि की समाप्ति से पहले ही पूर्ण कर लिया जाएगा।

    (2) उपराष्ट्रपति की मृत्यु, पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से हुई उसके पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन, रिक्ति होने के पश्चात्‌ यथाशीघ्र किया जाएगा और रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति, अनुच्छेद 67 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, अपने पद ग्रहण की तारीख से पाँच वर्ष की पूरी अवधि तक पद धारण करने का हकदार होगा।


    शपथ(Oath)

    1. उप राष्ट्रपति को उसके पद की शपथ राष्ट्रपति अथवा उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति द्वारा दिलाई जाती है राष्ट्रपति भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखने एवं अपने पद व कर्तव्य के पालन की शपथ लेता है |
    2. उपराष्ट्रपति के वेतन व भत्ते भारत की संचित निधि से दिए जाते हैं |


    उपराष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान--

    प्रत्येक उपराष्ट्रपति अपना पद ग्रहण करने से पहले राष्ट्रपति अथवा उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष निम्नलिखित प्ररूप में शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा, अर्थात्‌: -- ईश्वर की शपथ लेता हूँ

    मैं, अमुक ---------------------------------कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करता हूँ, श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा तथा जिस पद को मैं ग्रहण करने वाला हूँ उसके कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करूँगा।




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